Thursday, April 30, 2015

हुंकार


बिखरे हुए हैं हम पथ पथ पर

धूल से काया है लथ पथ पर

दिल में जोश का भवंडर है

अपनी मंज़िल अपना घर है!

 

सहमे हुए थे रात के साये

कातिल अपनी बंदूक उठाए

छलनी किया जिसने था सीना

गैर नहीं अपने हमसाये

सदमी हुई अपनी यह रूह है

आँख से बहता है जो लहू है

अत्याचार हुआ क्यूँ हम पे

छीन ली पहचान क्यूँ हम से?

तो अब - बिखरे हुए हैं हम पथ पथ पर

धूल से काया है लथ पथ पर

दिल में जोश का भवंडर है

अपनी मंज़िल अपना घर है!

 

बीत गए सावन हैं कितने

आँख से मेरी बहते बहते

आस की इक सुबह है जागी

जन्मभूमी की लगन है लागी

प्रण हमने नया यह लिया है

संघटठित अपना अब युवा है

मिलके अब हुंकार भरेंगे

अपना अधिकार लेके रहेंगे

चाहे - बिखरे हुए हैं हम पथ पथ पर

धूल से काया है लथ पथ पर

दिल में जोश का भवंडर है

अपनी मंज़िल अपना घर है!