मेरी ज़मीन मुझे बुलाती है, एक आवाज़ लगाती है!
कब आएगा लौट के घर को तू, बस यही सवाल सुनाती है!
वो पल अकसर याद आते हैं, जब मौत नाची थी राहों में!
काफिर काफिर कह कह के जब, पीठ घौंपी थी अपने ही यारों ने!
एलानों में यालगारों में, हर जुलूस में लगते नारों में,
कश्मीरियत को जलाते रहे, मुखबिर कहके दहलाते रहे!
वो दहशत के पल रब जाने, कब जाएँगे मेरी यादों से!
मेरी ज़मीन मुझे बुलाती है, एक आवाज़ लगाती है!
कब आएगा लौट के घर को तू, बस यही सवाल सुनती है!
मेरे हुमवतनो मेरे साथियो, मेरे कदमों के साथ चलो!
मेरे संघर्ष में, वनवास में, मेरी थोड़ी सी मदद करो!
मुझे मेरा गाँव चाहिए, वो चिनार की छाँव चाहिए!
मेरा घर वो मेरा आशियाँ, जहाँ बीता था बचपन चाहिए!
ऐलान यह करता हूँ अभी, सुन ले मेरे कातिल सभी,
मैं लौट के इक दिन आऊँगा, फिर वहीं जहाँ बसाऊंगा!
अपने आँगन में फिर से मैं, अपनी दुनिया सजाऊंगा!
मैं लौट के इक दिन आऊँगा, मैं लौट के इक दिन आऊँगा!
Very moving ... Although I can possibly never understand all the agony, it is extremely painful.
ReplyDeleteThis should never happen to any human being. I hope you are able to go there sooner than later.
Aahee well said!
ReplyDeletekhodah hai tufaan fir seh tumneh..Woh Ashq aabh rukteh nahi
ReplyDeleteRahul.. we all will return! :)
ReplyDeleteaaz pagah suli cheryi..
assi che tarun ghar.. aaz ya pagah.. magar tarun che.
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